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कुछ कलाकार जब फ़िल्मी दुनिया में कदम रखते हैं, तो इसी सोच के साथ आते हैं कि आएंगे और छा जायेंगे और फिर वह चकाचौंध में आकर कई बार ऐसी फिल्मों का चुनाव कर लेते हैं, जो गैर जरूरी होते हैं और जो उनके पर्सोना को और कमजोर करते हैं, और कुछ कलाकार यह सोच कर ही आते हैं कि कम फिल्में ही सही, लेकिन दमदार और यादगार किरदार निभाऊंगा। नवाजुद्दीन सिद्दीकी, पंकज त्रिपाठी, इरफ़ान खान और ऐसे कई कलाकार हैं, जो इसी श्रेणी में आते हैं। मिर्जापुर के मुन्ना भईया उर्फ़ दिव्येंदु शर्मा भी मुझे ऐसे ही कलाकारों की श्रेणी में नजर आते हैं, जिन्हें भागने की हड़बड़ी नहीं है, बहुत सोच-समझ कर, अच्छे किरदारों के साथ वह अपनी पैठ इंडस्ट्री में जमा रहे हैं। वह अपने काम से संतुष्ट भी हैं और दर्शकों को भी संतुष्ट कर रहे हैं, यह उनसे बातचीत करने पर मैंने तो महसूस किया। इन दिनों, दिव्येंदु अपनी नयी फिल्म मेरे देश की धरती को लेकर चर्चे में हैं। फिल्म किसान आंदोलन के एक अहम मुद्दे को भी उजागर करता है, ऐसे में दिव्येंदु ने इस मुद्दे पर और अपनी करियर प्लानिंग को लेकर भी विस्तार से बातचीत की है मुझसे, जिसके अंश मैं यहाँ शेयर कर रही हूँ।
दिव्येंदु का मानना है कि देश में जो किसान क्रांति की जीत हुई, वह दर्शाती है कि डेमोक्रेसी की ताकत इसी को कहते हैं। किसान आंदोलन को लेकर अपनी बेबाक राय रखते हुए दिव्येंदु ने एक जरूरी बात रखी है।
मैं तो अपने देश के किसानों के लिए बेहद खुश हूँ, उन्होंने जो किया है, वह उल्लेखनीय भी है और अद्भुत भी है, इसे नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है, क्योंकि आसान नहीं होता है कि इतने दिनों तक, इस तरह एकता जो बरक़रार रख कर अपनी आवाज उठाना और क्रांति लाना, क्रांति को आवाज दे पाना। जितनी बड़ी और लम्बी मुहिम चलाई है, उन्होंने वह आसान नहीं रही है। इस क्रान्ति की जीत यह भी बताती है कि अगर आपको कुछ अच्छा नहीं लगे, तो आप आवाज उठा सकते हैं, और इसको ही डेमोक्रेसी कहते हैं, जो है वह जनता ही है। जनता ही सरकार बनती है। सरकार बनने के बाद, वह हमें नहीं बता सकते कि हम क्या करें क्या नहीं, बल्कि उनको समझना होगा कि आपको वहां जनता ने ही बिठाया है और जनता के हित में जो कुछ भी है, आपको करना ही होगा। देश के लोग ही सबकुछ हैं।
दिव्येंदु कहते हैं कि बतौर कलाकार, वह इस फिल्म से जुड़े, क्योंकि इसमें किसान आंदोलन और देश में युवाओं के बीच बढ़ रहे बेरोजगार की बात को भी दर्शाया गया है।
मेरे देश की धरती की जो थीम है, वहीं मुझे कहीं न कहीं इस फिल्म को करने के लिए काफी अट्रैक्ट हो गया। किसानों के मुद्दे की बात हुई है इसमें, हालाँकि यह कहानी फार्मर बिल को लेकर हुए निर्णय से पहले ही हमने शुरू कर दी बननी। लेकिन मुद्दा तो अहम है, इसके अलावा कहानी में युवाओं के बेरोजगार होने पर जो आत्महत्या की बात हो रही है, इन बातों ने मुझे अट्रैक्ट किया है। बतौर एक आर्टिस्ट के रूप में मुझे लगा कि कहीं न कहीं मैं इनकी एक वॉइस बन पाऊंगा और लोगों तक अपनी बात पहुंचा पाऊंगा।
दिव्येंदु शर्मा साफ़तौर पर कहते हैं कि उन्हें काम को लेकर कोई हड़बड़ी नहीं है। वह नाम बनाने के चक्कर में कोई भी फिल्म नहीं चुन लेंगे।
मैं शुरू से अपने काम को लेकर हाइपर या कॉम्पटीटिव नहीं रहा हूँ, मुझे कुछ भी करने की बात दिमाग में नहीं रही है। मैंने काफी काम को न भी कहा है, क्योंकि मुझे ऐसे काम नहीं करने कि सिर्फ लम्बी फेहरिस्त हो जाए और मेरे किरदार को कोई याद ही न रखे। वैसे मेरे कॉम्पटीटिव नहीं होने का यह भी कारण है कि मुझे पता है कि ऐसे काफी कम एक्टर्स होते हैं, जो बाकायदा एक्टिंग की ट्रेनिंग लेते हैं, मुझे मेरी एफटीआईआई की ट्रेनिंग ने वह कॉन्फिडेंस दिया है, इसलिए भी मैं बाकी के सामने खुद को कम नहीं आंकता हूँ। मेरी ट्रेनिंग में यह बात सिखाई गई है कि अगर आपके मन में भय है, यानी ज्ञान अधूरा है, इसलिए मैं डरता नहीं हूँ। साथ ही मैं आज भी अपने थियेटर की एक्सरसाइज को जारी रखता हूँ। यह सब मुझे अपने काम के प्रति समर्पण सिखाती है और मुझे हड़बड़ी में गड़बड़ी करने से रोकती है।
दिव्येंदु बताते हैं कि मिर्जापुर के मुन्ना भईया के किरदार ने निर्देशकों का अप्रोच उनके प्रति बदला है।
मैं इस बात से आश्चर्य करता हूँ, लेकिन यह बात सच भी है कि मुझे मिर्जापुर के मुन्ना भईया के किरदार के बाद, निर्देशकों ने कभी टाइपकास्ट करने की नहीं सोची, बल्कि अब उनके जेहन में आ गया है कि ये बंदा हर तरह के रोल कर सकता है और इस वजह से अब मुझे वेराईटी ऑफ़ रोल्स मिल रहे हैं, जबकि शुरू में मेरी शुरुआती फिल्में चश्म-ए -बद्दूर और प्यार का पंचनामा के बाद, बॉय नेक्स्ट डोर और गुडी-गुडी रोल्स ही आने लगे थे। निर्देशकों का अब मुझ पर ट्रस्ट बढ़ा है और मुझे मेरे मन लायक रोल्स आ रहे हैं। और अब लगता है ऐसा कि इतने दिनों की तपस्या पूरी हुई है। इसलिए मैं इस लोकप्रियता से खुश हूँ, आज मैं किसी भी जगह जाता हूँ, तो एयरपोर्ट से लेकर शहर तक में मैं इसी नाम से जाना जाता हूँ, कितनी नानी और दादी ने भी मेरे शो देखे हैं, जबकि शो में गालियां भी थीं, मुझे थोड़ी तो झिझक भी होती है, लेकिन खुश हूँ कि मेरी फिल्म ने एक इम्पैक्ट तो छोड़ा है।
दिव्येंदु साफ-साफ कहते हैं कि हमें ओरिजिनल कॉन्टेंट पर काम करने की जरूरत है।
मेरा मानना है कि कहीं न कहीं साउथ की जो फिल्में होती हैं, वह काफी लोकप्रिय ही रही हैं, क्योंकि उसमें काफी लार्जर देन लाइफ किरदार निभाते हैं, लेकिन फिर भी ऐसा बहुत कुछ होता हैं, जो आम इंसान के दिल को छूता है। अब रीमेक फिल्मों के बाजार को बंद करना होगा, कहीं न कहीं बॉलीवुड बहुत फ्लपी हो गया था, काफी ग्लैमर और इन चीजों में ही खो गया था, अब यह सब खत्म करना होगा, अच्छी कहानियों को लाना होगा, क्योंकि अगर एक डब की गई फिल्म हमारे यहाँ कमाल करती है, मतलब दर्शकों के सामने लैंग्वेज भी अब कोई बैरियर नहीं रह गई है। ओटीटी की वजह से अब दर्शक रियलिज्म चाहते हैं। ऐसा नहीं है कि मैंने रीमेक फिल्मों में काम नहीं किया है। लेकिन मैं इस कन्वर्सेशन रख रहा हूँ कि हमें ओरिजिनल के तरफ रुख करना ही होगा।
दिव्येंदु मानते हैं कि ओटीटी की दुनिया ने उन्हें फैन बेस दिया है।
मुझे ओटीटी और सिनेमा में कौन बेस्ट है, इसके बहस में नहीं पड़ना है, मैं तो मानता हूँ कि ओटीटी की दुनिया ने मेरे फैन बेस को बढ़ाया है। मैं तो लगातार ओटीटी के लिए काम करूँगा, मैं तो इसे इंडस्ट्री के लिए एक एक्स्ट्रा रेवन्यू का जरिया मानता हूँ, जिसने फिल्म टीवी, सैटेलाइट के बाद अब ओटीटी से भी रेवेन्यू कमाना शुरू किया है, तो इस इंडस्ट्री को और ग्रो करना चाहिए।
दिव्येंदु का कहना है कि उन्हें हॉलीवुड में काम तो करना है, लेकिन एजेंट रख कर नहीं, वह चाहते हैं कि वह कुछ ऐसे किरदार निभा लें कि उन्हें वहां दिखाने पर अच्छा लगे। इसके अलावा दिव्येंदु निर्देशन भी करना चाहते हैं।
वाकई में, यह दिव्येंदु जैसे कलाकार का कन्विक्शन ही है कि उन्हें अच्छे किरदार मिल रहे हैं और वह अपने बेस्ट दे रहे हैं और साथ ही अलग मिजाज के रोल्स कर रहे हैं, उनकी फिल्म मेरे देश की धरती ,6 मई को तो रिलीज हो ही रही है, साथ ही वह यशराज फिल्म्स की भोपाल गैस ट्रेजेडी पर बन रहे ‘The Railway Men’ नामक प्रोजेक्ट का भी हिस्सा हैं, अमेजॉन मिनी टीवी के लिए भी उन्होंने प्रोजेक्ट किये हैं, साथ ही और भी दिलचस्प प्रोजेक्ट्स वह कर रहे हैं। मुझे पूरी उम्मीद है कि इन सभी में वह अपने बेस्ट ही देंगे, क्योंकि वह एक्टर क्यों बने हैं, उन्हें मालूम भी है और वह शिद्दत से अपने किरदारों में ढल भी जाते हैं।
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